श्री तेमड़े राय मन्दिर  

Posted by J.K.ChArAn

श्री तेमड़े राय मन्दिर :
यह स्थान जैसलमेर शहर से २५ की. मी. दक्षिण की तरफ़ बना हुवा हें! इस स्थान को दूसरा हिंगलाज स्थान
के नाम से जाना जाता हें ! इस पर्वत पर तेमड़ा नामक विशालकाय हुण जाति का असुर रहता था ! जिसको मातेश्वरी ने उक्त पर्वत की गुफा मे गाढ दिया था उसके ऊपर एक भयंकर पत्थर रख दिया था जो आज भी वहा मोजूद हें ! यहाँ मातेश्वरी ने काफी समय निवास किया ! मैया का परिवार कुछ समय इस माड़ प्रदेश मे रहा फ़िर वापिस कच्छ प्रान्त अपने वतन को चले गए ! मातेश्वरी ने सन ९९९ को सातों बहनों सहित हिंगलाज धाम को गमन किया ! तब तत्कालीन शाशक श्री देवराज ने इस पर्वत पर मन्दिर बनाया ! यहाँ मेलार्थी आने लगे ! मैया के प्रति भक्तो की आस्था मे बढोतरी हो गई ! वर्त्तमान मे हजारो आदमी पैदल व अपने साधनों से प्रति वर्ष मैया के आलोलिक रूप का दर्शन करते हें ! मैया सब की पुकार सुनती हें अभी कुछ सालो पहले किसी ने चार भुजा धरी शेरो वाली मैया की मूर्ति स्थापित कर दी मैया की प्रत्येक मूर्ति सात रूपों मे हें ! मैया सबकी रक्षा करे !!!!

तकत विराजी तेमड़े, है दूजो हिंगलाज ! मोटो राकस मारियो , गिरवर ऊपर गाज !!

देग राय मन्दिर  

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देग राय मन्दिर : यह स्थान जैसलमेर से ५० की. मी. देवीकोट साकड़ा रोड़ पर हें ! यहाँ एक तालाब के ऊपर बड़ा रमणीक मन्दिर हें ! इस जगह मातेश्वरी ने सहपरिवार निवास किया था ! एक दिन एक असुर रूपेण भेंसे को काट कर देग मे पकाया था जब भेंसे के मालिक ने मैया के भाई महरखे से पूछा तो उसने सत्य बात बता दी इससे कुपित होकर देवी ने भाई को श्राप दे दिया व उस भेंसे की साब्जी को चंदले मे तबदील कर दिया व उस महाशय के भ्रम का निवारण हुवा , कुछ जानकर लोग इस दुर्घटना का जिक्र अन्य जगह का करते हें लेकिन मैया ने भेंसे का भक्षण इसी जगह किया था इसी कारण भाई को श्राप दिया था ! मैया के श्राप से भाई का पैणा सर्प ने दस लिया था ! महामाया ने अपने तपोबल से सूर्य को लोहड़ी रूपी चादर की धुंध से ढक दिया था ! मैया ने भी मर्यादा पुरषोतम श्री राम की तरह मनुष्य लीला के लोकिक कार्य इस भाती किए थे देव अगर देविक साधना से चाहते तो तुंरत जीवन दे देते , लेकिन संसारियों को भ्रम मे डालने ले लिए उपचार औषधि से जीवन दान विधि बताई ! इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे , बकरे की बलि चढाई जाने लगी ! मनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हें !!

दे पुजाई देविया , रवी खड़ो पग रोप , मार जिवाडो मेहरखो , कियो आवड़ा कोप !!

पनोधर मंदिर  

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पनोधर मंदिर :
आवड़ा माता का यह स्थान मोहनगढ़ से ६ की. मी. उतर की और सिथत हे उसके चारो और रेत के टीले हें पुराने समय मे इस जगह पर एक कच्चा मन्दिर था उसके पास एक खेजड़ी का पुराना वृक्ष था जिसके निचे पानी का कुवा था ! यहाँ पर पुराने समय मे लाड जाती का एक मुसलमान भेड बकरिया चराया करता था व खेजड़ी वृक्ष के खोखे खाया करता था , एक दिन अचानक खोखे लेते हुवे पैर फिसलने से कुवे मे गिर गया ! कुवा बहोत गहरा था ! फ़िर भी वही व्यक्ति अनार्य होते हुवे उक्त देवी का स्मरण मन ही मन करने लगा ! उसके घरवालो ने चार पाँच दिन तक खोज ख़बर ली आख़िर फिरते हुवे कुवे के पास आए तो उसने आवाज दी मे सकुशल पाच दिन से कुवे मे बता हू , खाने के लिए मैया खेजड़ी के खोखे डाल रही हें , पीने को पानी हें मुझे इस खेजड़ी वाली मैया ने बचाया हें ! उसको बहार निकला गया वह शुद्ध भावः से मैया की वंदना करने लगा ! कहते हें उक्त मुसलमान का नाम पनु था , उसका मैया ने उद्धार किया इसलिए उक्त स्थान को पनोधरी राय के नाम से लोग पुकारने लगे , वर्तमान मे बड़ा भव्य मन्दिर बना हुवा हें !!

जाति गुणे जोगनी , धावे जो चित ध्यान ! पड्यो नाम पनोधरी पूजे लाड प्रधान !

काले डूगर राय मन्दिर  

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काले डूगर राय मन्दिर : यह मन्दिर जैसलमेर शहर से ४५ की. मी उतर दिशा मे एक पहाड़ी की चोटी पर हें ! इस पहाड़ी का रंग काला होने के कारण इस मन्दिर को काले डूगर राय के नाम से जाना जाता हें ! जब माड़ प्रदेश के महाराजा भादरिये से जब वापिस पधारे तब मैया के कथानुसार इस पहाड़ी पर पधार कर मैया के नाम से एक छोटे से मन्दिर की स्थापना कर दी थी जो कालांतर मे अनेको भक्तो के सहयोग से भव्य मन्दिर बन गया ! जैसलमेर व आसपास के ग्रामो का विशेष श्रद्धा का केन्द्र हें ! उस समय माड़ प्रदेश एक जंगली एरिया था उबड़ खाबड़ इलाका था , हालाँकि मैया उस समय शशरीर इस धरा पर विराजमान थी ! लेकिन मैया एसे पर्वतो मे जाकर तपस्या लीन हो जाती थी !सभी को दर्शन दुर्लभ थे सिर्फ़ धर्मात्मा राजा या अनन्य भक्तो के वसीभूत होकर मैया को शशरीर उस समय पधारना पड़ता था , मैया कभी नभ डूगर , कभी काले डूगर , कभी भूरे डूगर इस प्रकार अनेको पर्वतो पर निवास स्थान था ! जिस जगहों का भक्तो का मालूम हुवा वहा तो स्थान बना दिए बाकि जगहों का आज तक पता नही हे !!!!

काले डूगर कोड सु , नमै नगर नर नार पूजा ! चढ़े पहाड़ पर, पुरे भगत पुकार !!

श्री भादरिया राय मन्दिर  

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श्री भादरिया राय मन्दिर : श्री भादरिया राय मन्दिर स्थान जैसलमेर से करीब ८० की. मी. जोधपुर रोड धोलिया ग्राम से १० की. मी. उतर की तरफ़ हें ! उक्त स्थान के पास एक भादरिया नमक राजपूत रहता था उसका पुरा परिवार आवड़ा माता का भक्त था ! जिसमे उक्त महाशय की पुत्री जिसका नाम बुली बाई था वह मैया की अनन्य भक्त थी ! उसकी भक्ति की चर्चाए सुनकर माड़ प्रदेश के महाराजा साहब पुरे रनिवास सहित उक्त जगह पधारे , बुली बाई से महारानी जी ने साक्षात रूप मे मैया के दर्शन कराने का निवेदन किया ! उक्त तपस्वनी ने मैया का ध्यान लगाया , भक्तो के वस भगवान होते हें ! मैया उसी समय सातो बहने व भाई के साथ सहित पधार गई ! सभी मे गद गद स्वर मे मैया का अभिवादन किया तब रजा ने मैया से निवेदन किया मैया आप सभी परिवार सहित किस जगह विराजमान हें तब मैया ने फ़रमाया मे काले उचे पर्वत पर रहती हू ! इस प्रकार मैया वहा से रावण हो गई , मैया के दर्शन पाने से सभी का जीवन धन्य हुवा ! उसी स्थान पर भक्त भादरिये के नाम से भादरिया राय मन्दिर स्थान महाराजा की प्रेणना से बनाया गया !

श्री घंटियाली राय मन्दिर  

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श्री घंटियाली राय मन्दिर : स्थान तनोट मन्दिर से बी. एस. ऍफ़. मुख्यालय से आते समय १० की. मी प्रूव की और इसी रोड पर हें ! जब मातेश्वरी तणोट से पधार रही थी तब इस स्थान के धोरों मे भयंकर वन मानुस असुर रहता था ! उसके गले मे बड़ी भयंकर मवाद भरी प्राकुतिक गाठ थी उकत असुर इतना भयंकर था की जब वह चलता तो उसके शरीर से गाठ टकराने पर बड़ी भरी आवाज निकलती थी वह भोजन की तलास मे प्रत्येक प्राणियो के साथ साथ मनुष्यों को भी खा जाता था ! वहा की प्रजा इसके आतंक से दुखी थी ! प्रत्येक ग्रामो मे रात्रि को पहरा बैठाया जाता था ज्यादा मनुष्य देखकर वह भाग जाता था ! उसे जो भी अकेला मिलता उसे खा जाता था ! ऐसे भयंकर देत्य को मैया ने उसकी घंटिया पकड़ कर मार गिराया व वहा के निवासियों ने उसे रेत मे गाड दिया व पास मे मातेश्वरी का मन्दिर बना दिया ! उस घंटिवाले असुर को मारने से घंटियाली राय नाम से प्रशिद्ध हुवा !!!!

घंट भज्यो घंटियालरो , राकस मेटी राड़, पाट बैठी परमेश्वरी , खुशी भई खडाल !!

श्री तणोट राय मंदिर  

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श्री तणोट राय मंदिर : स्थान भाटी रजा की राजधानी थी वह मातेश्वरी के भक्त थे ! उनके आमंत्रण देने पर महामाया सातों बहने तणोट पधारी थी , इसी कारण भक्ति भाव से प्रेरित होकर राजा ने एक मन्दिर की स्थापना की थी , वर्तमान मे यह स्थान जैसलमेर नगर से १२० की.मी पशिचम सीमा किशनगढ़ रोड पर बना हुवा हें ! जो भारतीय सेना बी. एस. ऍफ़. जैसलमेर राज घराना व खाडाल के ग्रामो का मुख्य आस्था केन्द्र हें बड़ा ही भव्य रमणीक मन्दिर हें ! कहते हें सन १९६५ मे पाक सेना का पड़ाव था लेकिन मातेश्वरी की कृपा से किसी भी सैनिक के कोई खरोच भी नही आयी ! उल्टे पाक सेना की पुरी ब्रिगेड आपस मे लड मरी , उस सेना का ब्रिगेडियर यह माजरा देखकर विसमित हो गया वह मन ही मन इस देविक चमत्कार से मुसलमान होते हुवे भी भी श्रद्धा से मनोती मानने लगा व माता की शरण ग्रहण करने पर उसके प्राण बच गये पुरी ब्रिगेड ख़त्म हो गई उकत अधिकारी मैया का भक्त बन गया ! कुछ समय बाद मे पासपोर्ट से भारत आया तणोट राय की पूजा अर्चना कर पश्चिम सीमा पर दोनों मुल्क मे शान्ति बनी रहे , ऐसी कामना करके अपने वतन को लौट गया ! इस प्रकार माताजी कितनी दयालु हें जो उसे पुकारता उसे शरण अभय कर देती हें ऐसे चमत्कारों से वसीभूत होकर बी. एस. ऍफ़. के कर्मचारी व अधिकारी तो मैया की अनन्य भगत बन गये प्रत्येक कंपनी जहा भी रहती हें सर्वप्रथम मैया का छोटा मोटा स्थान बना कर नियमित पूजा होती हें नवरात्री के दिनों मे बड़ा भव्य मेले का आयोजन होता हें ! अनेको यात्री आते हें इस प्रकार मुख्यालय से तणोट राय आवागमन के साधन नव दीन तक निशुल्क बसे चलती हें ! बी. एस. ऍफ़. के फोजी भाई तो धन्य हें जो सीमा की निगरानी करते हुवे मैया के प्रति अटूट श्रदा से सेवा पूजन करते हें , कोई मन्दिर मे सफाई का कार्य करते हें , कोई लंगर सँभालते हें और कई गाना बजाना करते हें ! कितने यात्रियों की सेवा मे जुट जाते हें , हमेशा लंगर भोजन का आयोजन होता हें ! मैया के भजन कीर्तन चलते रहते हें , धन्य हें मैया व भक्त फोजी भाई !!!!

तणू भूप तेडाविया, आवड़ निज एवास ! पूजा ग्रही परमेश्वरी , नामे थप्यो निवास !!